विश्व की एक प्रमुख नकदी फसल है, जिससे चीनी, गुड़,आदि का निर्माण होता हैं। गन्ने का उत्पादन सबसे ज्यादा ब्राजील में होता है और भारत का गन्ने की उत्पादकता में संपूर्ण विश्व में दूसरा स्थान है । गन्ने की खेती बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देती है और विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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Scientific classification
Order: Poales
Kingdom : Plantae
Family: Poaceae
Subfamily: Panicoideae
Genus: Saccharum
Species: S. officinarum
वानस्पतिक नाम – Saccharum officinarum
भारत के प्रमुख गन्ना अनुसंधान केन्द्र
- भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान,लखनऊराष्ट्रीय शर्करा संस्था,
- कानपुरवसंतदादा शुगर इंस्टीटयूट, पुणे
- चीनी प्रौद्योगिकी मिशन,नई दिल्ली
- गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बतूर तमिलनाडु
- उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश
गन्ने का परिचय
गन्ने का प्राचीन भारतीय के इतिहास में एक समय ऐसा भी समय रहा है जब याचक के पानी मांगने पर उसे मिश्रीमिश्रित दूध दिया जाता था। तब देश में दूध और घी की नदियां बह रही थीं। हमारे अपने देखे काल में ही किसी के पानी मांगने पर उसे पहले गुड़ की डली भेंट की जाती थी और बाद में पानी। हमारा कोई पर्व या उत्सव ऐसा नहीं होता जिस पर हम अपने बंधु-बांधवों और इष्ट-मित्रों का मुंह मीठा नहीं कराते। मांगलिक अवसरों पर लड्डू, बताशे, गुड़ आदि बांटकर अपनी प्रसन्नता को मिल-बांट लेने की परम्परा तो हमारे देश में लम्बे समय से रही है। सच तो यह है कि मीठे की सबसे अधिक खपत हमारे देश में ही है।आयुर्वेद के ग्रन्थों में मधुर रस के पदार्थों से भोजन का श्रीगणेश करने का परामर्श दिया गया है। “ब्रह्मांड पुराण” में भोजन का समापन भी मीठे पदार्थों से ही करने का सुझाव है। एक ग्रन्थ में तो भोजन में मूंग की दाल, शहद, घी और शक्कर का शामिल रहना अनिवार्य कहा गया है।
‘‘नामुद्रसूपना क्षौद्र न चाप्य घृत शर्करम्।”
ग्रीष्म ऋतु में शाली चावलों के भात में शक्कर मिलाकर सेवन करने का सुझाव है। शक्ति-क्षय पर मिश्री मिले दूध और दूध की मिठाइयों के सेवन करने की बात कही गई है।सुश्रुत ने भोजन के छ: प्रकार गिनाए हैं: चूष्म, पेय, लेह्य, भोज्य, भक्ष्य और चर्व्यपाचन की दृष्टि से चूष्य पदार्थ सबसे अधिक सुपाच्य बताए गए हैं। फिर क्रम से उनकी सुपाच्यता कम होती जाती है और चर्व्य सबसे कम सुपाच्य होते हैं। ईख या गन्ने को जो मिठास का प्रमुख स्रोत है, पहले वर्ग में रखा गया है, गन्ने का रस, शरबत, फलों के रस पेय पदार्थों में हैं। चटनी-सौंठ-कढ़ी लेह्य दाल-भात भोज्य, लड्डू-पेड़ा, बरफी भक्ष्य और चना-परवल, मूंगफली चर्व्य हैं।
मिठास का नाम गन्ना
जब हम मिठास की बात करते हैं, विशेषकर भोजन में मिठास की, तो हमारा ध्यान बरबस गन्ने की ओर जाता है। उससे हम अनेक रूपों में मिठास प्रदान करने वाले पदार्थ प्राप्त करते हैं, जैसे-गुड़, राब, शक्कर, खांड, बूरा, मिश्री,चीनी आदि। ऐसे तो मिठास प्राप्त करने के कई अन्य स्रोत भी हैं जिसमें कृत्रिम मिठास भी शामिल हैं। मधु या शहद भी हमारे लिए प्रकृति का उपहार हैं जिसे वह मधुमक्खियों द्वारा फलों के रस से तैयार कराती है। दक्षिण भारत में ताड़ से गुड़ और शक्कर तैयार की जाती है। पश्चिम एशिया के देश खजूर से यह काम लेते हैं। यूरोपीय देश चुकंदर से चीनी तैयार करते हैं। *अब सैकरीन नाम से कृत्रिम चीनी भी बाजार में उपलब्ध है, जो मधुमेह के रोगियों के लिए भी निरापद बताई गई है।
फिर भी चीनी या उसकी शाखा-प्रशाखाओं को प्राप्त करने का सबसे प्रमुख स्रोत गन्ना ही है। कहते हैं, विश्व में जितने क्षेत्र में गन्ने की खेती की जाती है, उसका लगभग आधा हमारे देश में है। कोई आश्चर्य नहीं कि गन्ने की फसल हमारे देश की सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है और चीनी उद्योग हमारे देश के प्रमुख उद्योगों में है। हालांकि इस उद्योग को बहुत पुराना नहीं कहा जा सकता चूंकि चौथे दशक के बाद, या दूसरे महायुद्ध के दौरान ही इसका तेजी से विकास हुआ है।
किन्तु शक्कर, गुड़, मिश्री आदि के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती। हजारों वर्षों से यह उद्योग यहां स्थापित हैं, बल्कि हम अति प्राचीन काल से ही विश्व के प्राय: सभी भागों को इनका निर्यात करते रहे हैं। प्राचीन रोम, मिस्त्र, यूनान, चीन, अरब आदि सभी देशों को ये वस्तुएं जाती रही हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक हमारा देश चीनी का निर्यातक भी रहा है। कुछ आंतरिक खपत में वृद्धि के कारण और कुछ विभिन्न कारणों से उत्पादन में कमी के कारण कभी-कभी हमें विदेशों से चीनी का आयात करने को बाध्य होना पड़ता है।